Tuesday, September 7, 2010

'साहिल पे जो रुक गए ज़रा देर के लिए,आँखों से दिल में कितने समंदर उतर गए'
धीरे धीरे जैसे कुछ टूट रहा है
ऐसा लगता है जैसे अपना सब कुछ छूट रहा है
क्या पता कौन बदला है
तुम या वक़्त
आहटें  जैसे थम सी गयी है
न जाने क्या खुशबु थी उन पलों में
अब बस यही दुआ करतें है की
सिर्फ खुशियाँ उनके पास रहें
शायद मेरी आवाज़ कभी नहीं पहुंची उन तक
सोचा न था कि वो कभी नहीं पुकारेंगे
क्या जाने कौन बदला है
तुम या वक़्त
पर लगता है जैसे सब टूट रहा है
अपना सब कुछ छूट रहा है!
'हर तरह के शिकवे सह लेते हैं,जिंदगी बस यूँ ही जी लेते हैं,मिला लेते हैं हाथ जिनसे दोस्ती का हम,उन हाथों से फिर ज़हर भी पी लेते हैं'

1 comment: