खुदा ऐसे एहसास का नाम है
जो रहे सामने पर दिखाई न दे
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न जी भरके देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी उनसे मुलाकात की
कई सालों से कुछ खबर न थी उनकी
बड़ी आरज़ू थी उनसे मुलाकात की
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मोहब्बतों में दिखावे कि दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
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खुश रहे या उदास रहे
जिंदगी बस तेरे आस पास रहे
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पलकें भी चमक उठती है सोते में हमारी
इन आँखों को अभी किसी के ख्वाब छुपाने नहीं आते
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भला हम मिले तो भी क्या मिले
वही दूरियां वही फासले
न कभी हमारे कदम बढे
न कभी तुमने आवाज़ दी
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खुदा हमे कभी ऐसी खुदाई न दे
कि अपने सिवा कभी कुछ दिखाई न दे
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रफ्ता रफ्ता बुझ गए सारे चिराग
बस एक चेहरा झिलमिलाता रह गया
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सोये कहाँ थे,आँखों ने तकिये भिगोये थे
हम भी कभी किसी के लिए खूब रोये थे
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मुझे लगता है दिल खिंच कर चलो आता है हाथों पर
तुझे कुछ भी लिखूं तो मेरी उँगलियाँ ऐसी धड़कती है
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मैंने दो चार किताबें तो पढ़ी है पर
तुम जैसे तौर तरीके मुझे कम आते हैं
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उड़ने दो परिंदों को अभी आसमान में
फिर लौट कर बचपन के ज़माने नहीं आते
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मोतियों को छुपा लो सीपियों कि तरह
उन बेवफाओं को अपनी वफायें न दो
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आज हम सबके साथ खूब हसे
फिर देर तक उदास रहे
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उजाले अपनी यादों क हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में जिंदगी कि शाम हो जाए
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मुसाफिर हैं हम भी मुसाफिर हो तुम भी
जाने किस मोड़ पर फिर मुलाकात होगी.........
I would like to read some of your own shers :)
ReplyDeleteabhi poem se hi kaam chalana padega.......jab ehsas-e-manzar ayega to sher kya babbar sher bhi likh denge!!
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